सफ़ाई कर्मचारी महिलाओं की व्यथा
- Bhartiya Nagrik manch
- Aug 21, 2022
- 4 min read
देश में कूड़ा बीनने वालों का यदि प्रतिशत निकला जाए तो इसमें कोई शक नहीं कि 80% संख्या महिलाओं की है और ये महिलाएं ज्यादातर दलित समुदाय से सम्बन्ध रखती है। आधुनिकता व तकनीक से परे कूड़ा बीनना आज भी देश का सबसे कम वेतन वाला और सबसे ख़तरनाक काम है, जिसमे लगभग 600 सफाई कर्मचारी प्रतिवर्ष मृत्यु को प्राप्त होते हैं। सफाई करने वाली महिलाओं में लगभग 39 – 41 फीसदी वो महिलाएं हैं जिनके पति सफाई करते समय मर गए, उनके देहांत के बाद इन्हें अपने पति के स्थान पर बड़ी मुश्किलों से ये नौकरी मिली हैं । दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग की सदस्या अनीता उज्जैनवाल बताती है कि सफाई करने वाली महिलाओं का जीवन विभिन्न चुनौतियों को एक साथ झेलता हुआ चलता है, सबसे पहले इन महिलाओं को नौकरी करने के साथ साथ अपने घर के सारे काम करने पड़ते है वहीं दूसरी तरफ घर की आजीविका भी इन्हे ही चलानी होती है,और बच्चों को पालना ,उनका ध्यना रखना ये सब कार्य भी इन्हे ही करना होता है । क्यूंकि अधिकतर महिलाओं के पति या तो मर चुके होते हैं या फिर जो जीवित होते हैं उनमें से ज्यादातर अपनी कमाई का 65-70 फीसदी हिस्सा शराब व अन्य नशों में खर्च कर देते हैं ,इसलिए परिवार की सारी जिम्मेदारियां महिलाओं पर ही रहती है।ज्यादातर सफाई कर्मचारी अन्धविश्वास में पड़े रहते है और भुत पूजा में भी लगे रहते है जिसके कारण ज्यादातर कर्ज लेकर भेट पूजा अर्थात जानवर की बलि देते है ताकि इनकी समस्याएँ हल हो जाए, समस्या तो हल नहीं होती उलटे और परेशानी में पड़ जाते है कर्ज में दब जाते है साथ ही दिल्ली नगर निगम के सफाई कर्मचारी हो या नई दिल्ली नगर पालिक के सफाई कर्मचारी हो सभी का हाल एक जैसा है सभी का शोषण बहुत हो रहा है निगम ही इनका शोषण करता है समय पर सैलरी नहीं मिलती ,नई भर्ती नहीं होती और रिटायरमेंट का पैसा ,पेंशन आदि समय पर नहीं मिलते । एक रिपोर्ट के अनुसार कोरोना काल में दिल्ली नगर निगम में मरने वाले कुल 94 कर्मचारियों में आधे से ज्यादा संख्या (49) सफाई कर्मचारियों की है। अब इन परिवारों में सारी जिम्मेवारियां घर की महिलाओं पर आ गई है यह महिलाएं अपने अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाती है , इस से बच्चों का पढ़ाई छोड़ना और अन्य कार्यों में संलिप्त होने की सम्भावना ज्यादा है । ये व्यवस्था बहुत लंबे समय से चली आ रही है,अब इसमें सुधार होना चाहिए क्योंकि बिना किसी सुधार के इनकी आने वाली पीढ़ियां भी अनपढ़ रह कर इसी काम में संलिप्त रहेगी। अब प्रश्न ये उठता है कि इतनी बड़ी संख्या में सफाई कर्मचारियों कि आकस्मिक मृत्यु क्यों हुई? इसके पीछे सबसे महत्वपूर्ण कारण ये है कि कोरोना के समय में 93 फीसदी सफाई कर्मचारियों को दिल्ली नगर निगम की तरफ से उन्हें ना तो मास्क मिले, ना सेनेटाइजर और ना ही पीपीई किट। प्रोटेक्शन के बिना कार्य करते हुए कोरोना संक्रमण ने इन्हे अपनी चपेट में ले लिया जिससे बड़ी संख्या में इन्हे अपने जीवन से हाथ धोना पड़ा है। दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग की सदस्या अनीता उज्जैनवाल के गहन अध्ययन से पता चला है कि एक सफाई कर्मचारी की मृत्यु 60 वर्ष की उम्र से पहले ही हो जाती है, अर्थात सफाई कर्मचारियों कि औसत उम्र 60 वर्ष से कम है। इसके पीछे मुख्य कारण ये है कि सफाई के क्षेत्र में आधुनिकता के समय में भी तकनीकों का अभाव है और इसके साथ साथ सफाई कर्मचारी को अपने पूरे जीवन गंदी हवा में सांस लेना पड़ता है, ऐसे क्षेत्र जहां से आम महिला या पुरुष गुजरे तो भी उन्हें अपनी नाक बंद करनी पड़ती है, परंतु उस बदबूदार जगह पर इन सफाई कर्मचारियों का जीवन गुजरता है। गन्दी हवा में सांस लेने से इन्हे सांस के अनेकों बीमारियों से संक्रमित होना पड़ता है और जो महिला पुरुष दिल्ली नगर निगम और नई दिल्ली नगर पालिका में सफाई कर्मचारी है उन्हें काम के बाद खुली सड़क या डस्टबिन के पास ही खाना खाना पड़ता है और पीने के पानी की सुविधा नहीं होती और शौच के लिए भी खुले में जाना पड़ता है, सफाई कर्मचारी महिलाओं को ज्यादा कार्य करने की वजह से व सही खान पान ना होने से और काम उम्र में शादी और मां बन जाने से इनके शरीर में कमजोरी रहती है, जिस से ये बहुत कम उम्र में ही बूढ़ी और असहाय दिखने लगती है। दिल्ली सफाई कर्मचारी आयोग की सदस्या अनीता उज्जैनवाल का मानना है कि जिन महिलाओं के पति नहीं है उन्हें अपने दिन के लगभग 16 से 18 घंटे कार्य करना पड़ता है। एक सफाई कर्मी महिला सुबह 5 बजे उठ कर खाना बना कर काम पर निकल जाती है सफाई करने के बाद शाम को घर पहुंचती हैं तो ऐसे परिवार का विकास कैसे होगा, इनकी क्या वजह है एक ही वजह है कि निगम और सरकार इन्हे साधन सुविधा नहीं देती सिर्फ काम ही काम कराती है जिसके कारण इनका जीवन नारकीय हो गया है । अनीता उज्जैनवाल
अध्यक्ष ,भारतीय नागरिक मंच
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